बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है: पुरुष का स्पर्म और औरत का गर्भ !!! लेकिन रुकिए …सिर्फ गर्भ ??? नहीं… नहीं…!!! एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो ! जबकि स्पर्म के लिए 13 साल और 70 साल का स्पर्म भी चलेगा ! लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है ! इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए ! एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार माहवारी (Period) आती हो ! जी हाँ ! वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ हर महीने बर्दाश्त करती हैं !
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि महावारी (Period) उनका चॉइस नहीं है ! यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है ! वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है ! कमर लगता है टूट गयी हो ! पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं ! लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों ! दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं ! ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में किसी जँग से कम नहीं ! बच्चे को जन्म देते समय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से तैयार हों ! चालीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों !
गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए मानसिक रूप से तैयार हों ! 5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो ! गर्भधारण के बाद कुछ विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की हिम्मत रखती हों ! (जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी घर को अपने सिर पर उठा लेती थी !) प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घण्टे के अलावा, दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो ! और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की हिम्मत रखती हों !
अपने खूबसूरत शरीर में स्ट्रेच मार्क्स और ऑपरेशन का निशान तअउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों ! कभी कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस रखती हों ! जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो ! 3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं ! एक गर्भ में आने के बाद एक स्त्री की यही मनोदशा होती है जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये !
औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ती है, बलिदान है ! इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है ! अरे जो पूजा करने योग्य है ! जो पूजनीय है ! उसे हम बस अपनी उपभोग की वस्तु समझते हैं ! आसमानी क़िताब के बकवासों के आधार पर उस पर पाबन्दी लगाते हैं! उसके ज़िन्दगी के हर फैसले, खुशियों और धारणाओं पर हम अपना अङ्कुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं!
इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है हमें तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना ! याद रखें जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानतें वो कभी मर्द हो ही नहीं सकतें ! स्त्री का सम्मान, इन्सानी हुकूक के दायरे में आता है ! वह भी उतनी ही स्वतन्त्र और सम्मान की हक़दार, भागीदार, साझेदार है, जितना कि कोई मर्द
!! कृपया महिलाओं का सम्मान करें !!