Honeymoon: जब हनीमून (मधुमास, सुहाग रात) का जादू क्षीण हो जाता है तो हमारे क्या विकल्प होते हैं ? हम आग को पुनः प्रज्वलित कर सकते हैं, हम कोई नया साथी खोज सकते हैं और दूसरा हनीमून मना सकते हैं, या हम ऊर्जा को कुछ ज्यादा ताजगी से और ज्यादा गहरायी के साथ रूपान्तरित कर सकते हैं । प्रेम एक गुलाब का फूल है । सुबह यह हवा में, धूप में झूमता रहता है और लगता है कि इसी मस्ती के साथ, ऐसी ही निश्चितता के साथ, इसी अधिकार के साथ यह सदैव बना रहेगा ।
यह इतना कोमल और फिर भी इतना मजबूत होता है कि हवा बहे, वर्षा हो, धूप हो, उसमें भी खिला रहता है, लेकिन सायंकाल तक इसकी पङ्खुड़ियाँ बिखर जाती हैं और गुलाब समाप्त हो जाता है । इसका मतलब यह नहीं है कि यह एक भ्रान्ति थी । इसका साधारण सा मतलब यही है कि जीवन में हर वस्तु बदलती रहती है । और परिवर्तन हर चीज को नया और ताजा कर देता है । जिस दिन विवाह समाप्त हो जाएगा पुरुष और स्त्री का जीवन स्वस्थ हो जाएगा, निश्चित रूप से हमारी कल्पना से भी अधिक लम्बा रहेगा । विवाह जीवन की बदलती हुई प्रकृति के विरोध में है, यह स्थायी का सृजन करता है ।
पति और पत्नी दोनों सुस्त और ऊबे हुए रहते हैं — जीवन में रस खो जाता है । निश्चित ही उन्हें अपना रस नष्ट करना ही होता है अन्यथा विवाद निरन्तर बना रहता है । पति किसी दूसरी औरत में कोई रुचि नहीं ले सकता, पत्नी दूसरे पुरुष के साथ नहीं हँस सकती । वे एक-दूसरे के कैदी हो जाते हैं । जीवन बोझ बन जाता है और यह एक दिनचर्या बन जाती है । ऐसा जीवन कौन जीना चाहता है ? जीने की इच्छा क्षीण हो जाती है । इससे रुग्णता और बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं क्योंकि मृत्यु के प्रति उनकी कोई प्रतिरोधिता नहीं होती ।
वास्तव में वे यह सोचने लगते हैं के इस सारे कुचक्र को शीघ्र ही जैसे भी हो समाप्त किया जाए । भीतर ही भीतर वे मृत्यु की इच्छा करने लगते हैं । उनकी मरने की इच्छा जाग्रत हो जाती है । सिगमण्ड फ्रायड पहला व्यक्ति था जिसने यह पता लगाया कि मनुष्य के अचेतन मन में मृत्यु की इच्छा विद्यमान होती है। किन्तु फ्रायड के साथ मैं सहमत नहीं हूँ । मृत्यु की यह इच्छा कोई सहज प्रवृत्ति नहीं है ।
यह विवाह की देन है, यह एक उबाऊ जीवन की देन है । जब व्यक्ति यह अनुभव करने लगता है कि जीने में अब कोई रोमाञ्च नहीं है । कोई नयी जगह, कोई नया ठिकाना नहीं मिलता, तो अनावश्यक रूप से जीते रहने का क्या लाभ है ? तब तो क़ब्र में शाश्वत नीन्द ही ज्यादा आरामदायक लगती है, जो ज्यादा सुविधाजनक और कहीं ज्यादा आनन्ददायक होती है । किसी भी पशु में मृत्यु की इच्छा विद्यमान नहीं होती ।
जङ्गल में कोई भी पशु आत्महत्या नहीं करता । किन्तु आश्चर्य यह है कि चिड़ियाघर में पशु भी आत्महत्या करते हुए पाये गये । और विवाह प्रत्येक व्यक्ति को चिड़ियाघर का एक पशु बना देता है — परिष्कृत, हजारों सूक्ष्म तरीकों से जंजीरों में जकड़ा हुआ होता है । सिगमण्ड फ्रायड को जङ्गली जानवरों या असभ्य मनुष्यों का पता नहीं था । मैं चाहता हूँ कि मनुष्य में कुछ जङ्गलीपन शेष रहे । यह मेरा विद्रोह है ।
उसे चिड़ियाघर का हिस्सा नहीं बनना है, वह तो स्वाभाविक ही बना रहेगा । वह जीवन के विरोध में नहीं जाएगा, वह तो जीवन के साथ बहेगा । यदि पुरुष और स्त्री समझौता कर सकते हैं कि हमें चिडियाघर का हिस्सा नहीं बनना है, जो बिलकुल भी कठिन नहीं है, जो सबसे सरल है, तो हमें चिड़ियाघर से मुक्ति मिल सकती है ।
इसी बात की जरूरत है — विवाह से मुक्ति । यदि स्त्री अपने स्वाभाविक जङ्गलीपन में बड़ी होती है और पुरुष अपने सहज जङ्गलीपन में बड़ा होता है, और अजनबी की तरह वे मैत्री भाव से मिलते हैं, तो उनके प्रेम में असीम गहरायी होगी, अत्याधिक आनन्द और सुखद नृत्य होगा ।
इसमें कोई करार नहीं होता, इसमें कोई कानून नहीं होता — प्रेम स्वयं में एक कानून है — और जब प्रेम समाप्त हो जाता है वे एक-दूसरे को कृतज्ञता के साथ अलविदा कहेंगे, जो सुन्दर क्षण उन्होंने एक साथ व्यतीत किये हैं, वे गीत जो उन्होंने एक साथ गाये हैं, वे नृत्य जो उन्होंने पूर्णिमा के दिन किया था, समुद्र तट पर उन सङ्गीतमय क्षणों के लिए कृतज्ञता के साथ ।
वे उद्यान की उन मधुर स्मृतियों को अपने साथ सँजोए हुए रखेंगे, और वे हमेशा-हमेशा के लिए कृतज्ञ रहेंगे । किन्तु वे एक-दूसरे की स्वतन्त्रता में बाधक नहीं बनेंगे, उनका प्रेम इसे रोकता है । उनके प्रेम को अधिक स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए । अतीत में यह अधिक से अधिक दासता देता आया है ।