Janmashtami importance: जन्माष्टमी सभी सनातनी भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस

Janmashtami importance :जन्माष्टमी सभी सनातनी भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस के रूप में मनाते है । रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज जनवरी 2016 से 5128 वर्ष पूर्व) श्रीकृष्‍ण का जन्म हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण पृथ्वी पर बढ़ रहे अत्याचार के कारण हुआ था । जब संसार में पाप और पुण्य का असंतुलन होता है तो फिर भगवान अपने किसी न किसी अवतार में आते है ।
जन्माष्टमी के दिन भक्तगण उपवास करते है भगवान कृष्ण का पूजन करते है और उन्हें अच्छे- अच्छे स्वादिष्ट पकवानों से भोग लगाते है यह दिन बहुत ही पावन दिन के रूप में मनाया जाता है और रात्रि आरती के बाद ही भक्तगण अन्न लेते है ।
जन्माष्टमी को लगभग पूरे भारतवर्ष में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है परंतु भारत के उत्तरी भाग में इसे अधिक महत्व दिया जाता है ।
महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में दही हाण्डी का खेल खेला जाता है और भगवान कृष्ण के बालस्वरूप की लीलाओं को याद किया जाता है ।

जन्माष्टमी से सीख :

जन्माष्टमी हमें यह सिखाती है कि बुराई का स्वरूप कितना बड़ा क्यों ना हो जाये और अच्छाई चाहे जितनी भी कमजोर लगे परंतु एक समय ऐसा अवश्य आता है कि जब अच्छाई कि विजय होती है । अच्छे कर्म करने वाला और सत्मार्ग पर चलने वाला मनुष्य शायद सुखी ना लगे परंतु वह आनंद की स्थिति में होता है ।

जन्माष्टमी अपने आप कर्मफल के बारे में बताती है भगवान राम ने बलि छुप करके बाण मारकर वध किया था और राम भगवान अपने दहत्याग के उपरांत वैकुण्ठ लोक में आये तो कुछ समय के बाद उन्हें यह ध्यान आया की उन्हें अपने इस कर्म का फल नहीं मिला तब ही अगले अवतार जो की भगवान कृष्ण का अवतार था श्री कृष्ण जी अंतिम समय में एक शिकारी के द्वारा चलाये हुए बाण से उनका देहांत हुआ है और वह शिकारी बाली ही थे जो की अगले जन्म में आये थे ।

Janmashtami 2024: सनातन धर्म में जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है।

Janmashtami 2024: इस तरह से मुरलीज़ार के आशीर्वाद को अपने जीवन में स्वीकार करें। तुम्हारा दुख चमक उठेगा. हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार 26 अगस्त (Janmashtami 2024) को जन्माष्टमी है। कृष्ण भक्तों में जन्माष्टमी को लेकर अधिक उत्साह है. खैर, इस लेख में हम आपको बताएंगे कि लड्डू गोपाल (Laddu Gopal)  को कैसे खुश किया जाए।

श्रीकृष्ण स्तुति का मार्ग: सनातन धर्म में जन्माष्टमी के त्योहार का विशेष महत्व है। इस खास अवसर पर लड्डू गोपाल (Laddu Gopal)  की विशेष पूजा की जाती है। व्रत भी रखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से साधक को मुरलीजर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसकी सुख-समृद्धि में योगदान होता है। कृष्ण की स्तुति के बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है। यदि आप इसका पाठ करेंगे तो आप अपने कार्य में सफल होंगे। कृष्ण स्तुति का पाठ करें.

कृष्ण कृष्ण शृणुष्वेदं यदर्थमहमागतः।
त्वत्समीपं महाबाहो नैतच्चिन्त्यं त्वयान्यथा॥

भारावतरणार्थाय पृथिव्याः पृथिवीतले।
अवतीर्णॊऽखिलाधार त्वमेव परमेश्वर ॥

मखभंगविरोधेन मया गोकुलनाशकाः।
समादिष्टा महामेघास्तैश्चेदं कदनं कृतम्॥

त्रातास्ताश्च त्वया गावस्समुत्पाट्य महीधरम्।
तेनाहं तोषितो वीरकर्मणात्यद्भुतेन ते ॥

साधितं कृष्ण देवानामहं मन्ये प्रयोजनम्।
त्वयायमद्रिप्रवरः करेणैकेन यद्धृतः॥

गोभिश्च चोदितः कृष्ण त्वत्सकाशमिहागतः।
त्वया त्राताभिरत्यर्थं युष्मत्सत्कारकारणात् ॥

स त्वां कृष्णाभिषेक्ष्यामि गवां वाक्यप्रचोदितः।
उपेन्द्रत्वे गवामिन्द्रो गोविन्दस्त्वं भविष्यसि ॥

अथोपवाह्यादादाय घण्टामैरावताद्गजात्।
अभिषेकं तया चक्रे पवित्रजलपूर्णया ॥

क्रियमाणेऽभिषेके तु गावः कृष्णस्य तत्क्षणात्।
प्रस्रवोद्भूतदुग्धार्द्रां सद्यश्चक्रुर्वसुन्धराम् ॥

अभिषिच्य गवां वाक्यादुपेन्द्रं वै जनार्दनम्।
प्रीत्या सप्रश्रयं वाक्यं पुनराह शचीपतिः ॥

गवामेतत्कृतं वाक्यं तथान्यदपि मे शृणु।
यद्ब्रवीमि महाभाग भारावतरणेच्छया ॥

ममांशः पुरुषव्याघ्र पृथिव्यां पृथिवीधरः।
अवतीर्योऽर्जुनो नाम संरक्ष्यो भवता सदा ॥

भारावतरणे साह्यं स ते वीरः करिषयति।
संरक्षणीयो भवता यथात्मा मधुसूदन ॥

कृष्ण कृष्ण शृणुष्वेदं यदर्थमहमागतः।
त्वत्समीपं महाबाहो नैतच्चिन्त्यं त्वयान्यथा॥
Janmashtami 2024

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥

इतीदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥

इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैः
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥
Janmashtami 2024
Exit mobile version